सोमवार से संसद का बजट सत्र शुरू हो गया लेकिन सरकार के सामने सत्र में अध्यादेशों को क़ानून में तब्दील करना सबसे बड़ी चुनौती है. सोमवार को संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव प्रताप रुढ़ी ने लोकसभा में संविधान की धारा 123 (2) ए के तहत कुल छह अध्यादेश सदन के पटल पर रखे.
इन अध्यादेशों में कोयला खदान विशेष प्रावधान अध्यादेश 2014, बीमा क़ानून संशोधन अध्यादेश 2014, भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास क़ानून संशोधन अध्यादेश 2014, नागरिकता संशोधन क़ानून अध्यादेश 2015, मोटर वाहन संशोधन अध्यादेश 2015, खदान और खनिज संशोधन अध्यादेश 2015 शामिल हैं.
सरकार का कहना है कि अध्यादेश लाना उसका अधिकार है और वो अध्यादेशों में सदन में बहस के लिए तैयार है. इन अध्यदेशों को क़ानून में बदलने के लिए सरकार ने विपक्ष से सहयोग मांगा है. इसी को लेकर संसदीय कार्यमंत्री वैंकया नायडू ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाक़ात की.
राज्यसभा टीवी से बातचीत में संसदीय कार्यमंत्री वैंकया नायडू ने कहा कि जो लोग अध्यादेशों की आलोचना कर रहे हैं उन्हें ये समझने की ज़रुरत है कि ये अध्यादेश देश के विकास और लोगों की भलाई के लिए लाए गए हैं और इनका सिर्फ विरोध न किया जाए.
उधर अध्यादेशों पर विपक्ष का कड़ा रुख बरकरार है. विपक्ष का कहना है कि अध्यादेशों के सहारे सरकार चलाना संसद की तौहीन है. कांग्रेस इस मसले पर व्यापक रणनीति के लिए मंगलवार सुबह साढ़े नौ बजे एक बैठक करेगी.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा टीवी से बातचीत में कहा कि अध्यादेश का रास्ता अलोकतांत्रिक है. उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश किसान विरोधी और ग़रीबों के ख़िलाफ़ है.
कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी दल सरकार को घेरने के लिए तैयार हैं. जनता दल यूनाईटेड के नेता शरद यादव ने राज्यसभा टीवी से कहा कि खुद राष्ट्रपति सरकार को अध्यादेशों से बचने की सलाह दे चुके हैं. हम गोलबंदी करके इसका विरोध करेंगे.
शीतकालीन सत्र की तरह ही बजट सत्र की शुरूआत में विपक्ष की गोलबंदी नज़र आ रही है. ख़ासतौर पर भूमि अधिग्रहण क़ानून और बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाने वाले क़ानून में संशोधन ने तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी जैसे धुर विरोधी दलों को भी साथ ला दिया है. इन दो मसलों पर संसद और संसद के बाहर दोनों जगह सरकार के कौशल और धैर्य की परीक्षा होगी.