नमस्कार, इस 15 अगस्त को हम 74 वां स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे यानी अंग्रेज़ो को देश छोड़े इतने बरस हो जायेंगे। हर बरस कुछ ऐसे मौके आते हैं जब हम रुकते हैं, सोचते हैं कि सफर कहाँ तक पंहुचा। देश – दुनिया में हमारी मेधा और साख किस पायदान पर है। इस बार भी ऐसा कुछ करने का इरादा है। चंद चुने हुए विषय और उनकी यात्रा से जुडी मोटी मोटी बातें। तो शुरू करते हैं खाद्य सुरक्षा यानि food security से। खाद्य सुरक्षा का मतलब – प्रत्येक नागरिक, खास तौर पर वंचितों को उचित मात्रा में नियमित रूप से पुष्टाहार मिले। हमारे विशेषज्ञ,भारत में खाद्य सुरक्षा को कृषि विकास चक्र से जोड़ते हुए चार चरणों में बांटते है
चरण | काल |
पहला - | 1947 से 1960 के दशक के मध्य तक |
दूसरा | - 1960 के दशक के मध्य से 1980 तक |
तीसरा - | 1980 से 1990 तक |
चौथा - | 1990 से आगे |
1947 में, देश में सालाना खाद्य उत्पादन करीब 5 करोड़ टन था। और हमारी जनसँख्या लगभग 33 करोड़ थी। ज़ाहिर है अन्न की मात्रा काफी कम थी। तो इस बुनियादी ज़रुरत को पूरा करने के लिए भारत ने Public Law 480 (PL-480).के तहत अमेरिका से गेहूं मंगाना शुरू किया था जिसका भुगतान रुपयों में होता था। वजह – नयी आज़ादी थी, विदेशी मुद्रा हमारे पास सीमित थी। ये सिलसिला कुछ अरसे तक चला। पर फिर 60 के दशक में राजनीतिक मतभेदों के चलते अमेरिका ने गेहू के आयात पर पाबन्दी लगा दी।
भारत के निर्माताओं को इस वाकये से साफ़ नसीहत मिली थी। खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर खुदमुख्तारी ही असल रास्ता और समाधान था।14 जनवरी,1965 में फूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया की स्थापना इस दिशा में उठा पहला ठोस कदम था। तत्कालीन कृषि मंत्री सी सुब्रमणियम ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को मेक्सिको से गेहू की एक ख़ास प्रजाति आयात करने के लिए भी राजी किया था जो भारतीय जलवायु में पनप सकती थी।
– 1966 में, भारत ने मैक्सिको से 18000 टन अच्छी उपज देने वाली गेहू की किस्मों का आयात किया। ये हरित क्रांति युग का पहला दौर था। .
– इस मुहीम की सदारत की थी नार्मन बोरलॉग और डॉ एम एस स्वामीनाथन ने।
– किसान बिरादरी के लिए समूचा सब्सिडी तंत्र (संकर बीज, उर्वरक और भारी रियायती कीमतों पर कीटनाशक) इसी दौर में जन्मा था
साइंस और तकनीक पर सवार इस मुहीम ने अगले 4 बरसों में ही रंग दिखाया। USDA के ये आकड़े देखिये
Market Year | Production | Unit of Measure | Growth Rate |
1960 | 10320 | (1000 MT) | NA |
1966 | 10394 | (1000 MT) | -15.21 % |
1970 | 20093 | (1000 MT) | 7.73 % |
पर 1966 -67 में पड़े दो भीषण अकाल, फसलों की बुआई में बदलाव और गेहू पर तवज्जो के चलते ये वृद्धि शुरू में नाकाफी रही। तो 1961 – 1971 के दशक के अंत में हमारी
जनसँख्या | करीब 55. 52 करोड़ |
औसत कृषि विकास दर | 1. 3 % |
डॉ स्वामीनाथन कहते हैं कि हरित क्रांति के पहले दौर के इन दूरगामी कदमों ने भारतीय किसानों को सिर्फ चार साल की अवधि में उतनी बरकत दी जितनी कि पिछले 4,000 वर्षों में हुई थी।
तो हरित क्रांति के दूसरे चरण में (1971 -1981)
जनसँख्या | करीब 68 .4 करोड़ |
औसत कृषि विकास दर | 1. 9 % |
इसी दशक में सरकार ने जन जन तक खाद्य सुरक्षा पहुंचाने के लिए तीन दूरगामी योजनाए शुरू या मजबूत की थी
– Public Distribution System (PDS)
– Integrated Child Development Services (ICDS)
– Food-for-Work (FFW)
80 के दशक में हरित क्रांति का तीसरा दौर शुरू हुआ था जिसने सही मायनो में खाद्य सुरक्षा को नए विस्तार और आयाम दिए। इस दौर में अन्न के अलावा दूध, मछली पालन, मुर्गी पालन, सब्जियां, फल के उत्पादन में भी तेज़ वृद्धि हुई। इस दौर में गेहू के अलावा धान सहित लगभग सभी फसलों को पूरे देश को कवर किया गया था जिससे ग्रामीण आय बढ़ी थी, गरीबी कम हुई थी। खाद्य सुरक्षा का आधार व्यापक हुआ था और सब्सिडी का प्रचलन बढ़ा था।
1981 से 1988 के बीच
जनसँख्या | करीब 84 करोड़ |
औसत कृषि विकास दर | 3. 8 % |
आपकी जानकारी के लिए PDS योजना दूसरे विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुई थी। 1992 तक ये सभी उपभोक्ताओं के लिए एक सामान्य पात्रता योजना थी। फिर इसे मजबूत और लक्षित करने के लिए Revamped Public Distribution System (RPDS) जून, 1992 लायी गयी जिससे दूर-दराज, पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में बसे वंचितों तक पंहुचा जा सके। आगे जून, 1997 में भारत सरकार ने गरीबों के लिए Targeted Public Distribution System (TPDS) की शुरुआत की। इसके तहत लाभार्थियों को दो श्रेणियों में बांटा गया। गरीबी रेखा या बीपीएल से नीचे के परिवार और गरीबी रेखा या एपीएल से ऊपर के परिवार। इस योजना के तहत गेहू, चावल, चीनी और केरोसिन रियायती दर पर बांटा जाता है। 15 अगस्त, 1995 में स्कूली बच्चों के लिए शुरू हुई मिड डे मील योजना को भी खाद्य सुरक्षा तंत्र की एक मजबूत पहल माना जाता है
इसी दौर में हुए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में सामने आया था कि देश की लगभग 5% आबादी को दिन में दो वक़्त की रोटी भी मयस्सर नहीं थी। तो इस सबसे गरीब तबके को ध्यान में रखते हुए दिसंबर, 2000 में Antyodaya Anna Yojana” (AAY) शुरू की गई थी।
1990 से 2000 तक
जनसँख्या | लगभग 105. 66 करोड़ |
औसत कृषि विकास दर | 3 . 8 % |
2005-2006 तक करीब 2.5 करोड़ परिवार अंत्योदय योजना का हिस्सा बन चुके थे। भूमिहीन खेतिहर मजदूर, सीमांत किसान, ग्रामीण कारीगर, शिल्पकार, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक, विधवाएं, बीमार व्यक्ति, जनजातियां और बीपीएल श्रेणी के सभी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति इसके पात्र हैं। इसी दशक में National Food Security Mission और Rashtriya Krishi Vikas Yojana (RKVY) का भी आगाज़ हुआ। इन दोनों योजना का लक्ष्य अन्न उत्पादन को बढ़ावा देना , किसानी को मुनाफा दे उन्हें उद्यमशील बनाना था
सन 2000 से 2010 तक
जनसँख्या | लगभग 123 . 43 करोड़ |
औसत कृषि विकास दर | 2. 4 % |
2011 के दशक की सबसे बड़ी उपलब्धि The National Food Security Act (NFSA), 2013 था। इस अधिनियम के Targeted Public Distribution System के तहत 75 % ग्रामीण आबादी और 50 % शहरी आबादी रियायती खाद्यान की हक़दार है। साथ ही राशन कार्ड जारी करने के उद्देश्य से 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की घर की महिला को वरीयता दी जाती है। नीति आयोग के ताज़ा आकड़ों के मुताबिक़ आज लगभग 80 करोड़ लोग खाद्य सुरक्षा के दायरे में हैं, इसमें खाद्यान की कुल सालाना खपत लगभग 552.6 लाख टन है और अनुमानित मासिक सब्सिडी करीब 11,906 करोड़ रुपये है।
सन 2011 से 2019 -20 तक
जनसँख्या | करीब 138 करोड़ |
औसत कृषि विकास दर | 2. 9 % |
सनद रहे कि TPDS के तहत APL, BPL और AAY परिवारों को खाद्यान्न आवंटन, 1993-1994 के योजना आयोग के अनुमानों के आधार पर या संबंधित राज्य सरकारों द्वारा चिन्हित परिवारों में से जो भी कम हो, इन्ही मानकों पर किया जाता है।
तो एक नज़र में
खाद्य | 1951-52 | 2019-20 |
खाद्यान उत्पादन | 50 MT | 291.95 MT |
गेहू | 6.46 MT | 106.21 MT |
चावल | 20 MT | 117.47 MT |
दाल | 8.41 MT | 23.02 MT |
दूध | 17 MMT | 53.5 MMT |
मछली | 8.52 Lakh Ton | 15 MT |
हरित क्रांति के साथ ही 1970 और 1980 के दशक में ऑपरेशन फ्लड भी शुरू हुआ। इस पहल ने भारत में दूध के उत्पादन और व्यापार में क्रांति ला दी और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में इजाफा किया। 1985 में मत्स्य उत्पादन बढ़ाने और लक्षित तबके तक पोषण पहुंचने के लिए ऑपरेशन ब्लू रेवोलुशन शुरू किया गया जिसके अच्छे नतीजे मिल रहे है।
जाते जाते – आज संविधान, सरकार और समाज – सब अन्न के अधिकार को मूल अधिकार मान रहे हैं। देश के सभी राज्य National Food Security Act का हिस्सा हैं। ये एक्ट दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में से एक है और भारत के उस संकल्प का बेजोड़ प्रमाण है जो उसने वंचितों की भूख मिटाने, खाद्य सुरक्षा को लागू करने और धरा को उर्वरा बनाये रखने के लिए लिया है। तो सफर जारी है – लक्ष्य है हर खाली पेट तक पहुंचने का, उसे अन्न की संजीवनी देने का। पर सरकार ही क्यों, आखिर हम और आप भी अपने स्तर पर किसी भूखे, गरीब इंसान को अन्न ज़रूर दें सकते है । दुआ मिलेगी।
(Data – Min of Agriculture, Min of Consumer Affairs, PIB, PRS, CSO, Economic Survey)