भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के पहले केस की पुष्टि केरल में 30 जनवरी, 2020 को हुई। संक्रमित व्यक्ति का चीन के वुहान शहर में आना जाना लगा रहता था। पहले से ही चौकन्नी बैठी सरकार ने तत्काल अंतराष्ट्रीय हवाई मार्ग से आने वाले सारे यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी, यात्राओं का इतिहास खंगाला जाने लगा। 5 मार्च तक देश के 30 हवाई अड्डों में 6. 5 लाख से ज़्यादा हवाई यात्रियों की स्क्रीनिंग की जा चुकी थी। और आपकी जानकारी के लिए भारत सरकार ने ये ज़रूरी कदम WHO द्वारा वायरस को वैश्विक महामारी करार देने से कहीं पहले उठाये थे।
11 मार्च को WHO ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया। तब तक सरकार हरकत में आ चुकी थी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान अपने हाथों में लेते हुए तैयारियों और उपायों की समीक्षा, निगरानी और मूल्यांकन के लिए एक उच्च स्तरीय मंत्री समूह (GoM) बना दिया था। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को इस वायरस के प्रकोप को कम करने और केंद्र सरकार के प्रयासों के समन्वयन की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। 11 मार्च, 2020 को मंत्री समूह ने स्वास्थ्य मंत्रालय को का कि उसे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 2 तहत सलाह देनी चाहिए ताकि ये लागू की जा सकें।
उसी दिन गृह मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 69 के तहत आने वाली शक्तियां जो गृह सचिव में निहित रहती हैं, स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव को सौंप दीं। आपकी जानकारी के लिए महामारी रोग अधिनियम के विपरीत, यह कानून आपदा की तैयारी के लिए एक ज़्यादा ठोस प्रशासनिक व्यवस्था प्रदान करता है। फिर बिगड़ते हालातों पर पैनी नज़र रख रही केंद्र सरकार ने 14 मार्च को COVID -19 को एक अधिसूचित आपदा घोषित कर दिया। इससे राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund) के तहत सहायता उपलब्ध कराई जा सकी। ये कोष, आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत बनाया गया था। वायरस तीसरी स्टेज तक न पहुंचे इसलिए 24 मार्च से राष्ठ्रव्यापी लाक्डॉन हो गया जो अब तक जारी है। प्रधानमन्त्री का संकल्प साफ़ था कि ‘जान है तो जहान है ‘.और हर देशवासी की जान कीमती है। इस दौरान जनहित में न सिर्फ त्वरित फैसले हुए बल्कि उन्हें ज़मीन पर भी उतरने के ठोस प्रयास हुए। इस दौरान महामारी के खिलाफ तंत्र से जुड़ा हर तबका पूरी ताकत के साथ सामने आ गया था। संकल्प एक था -महामारी को रोकना और परास्त करना। चलिए देखते हैं अग्रिम मोर्चे पर डटे कुछ सेक्टर्स के तरकशों से कौन से नए तीर निकले।
स्वास्थ्य क्षेत्र- लम्बे वक़्त से टेलीमेडिसिन को कानूनी मान्यता देने की मांग चली आ रही थी। कोरोना वायरस के तेज़ प्रसार के खिलाफ इसे एक मजबूत अस्त्र देखते हुए 25 मार्च, 2020 को टेलीमेडिसिन प्रैक्टिस गाइडलाइंस प्रकाशित कर सरकार ने इसे कानूनी वैधता प्रदान कर दी। इसके मुताबिक़ पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर्स (M.B.B.S और ऊपर) टेलीकॉन्सेशन यानी परामर्श दे सकते हैं। आपको बता दें कि इस प्लेटफार्म का इस्तेमाल स्वास्थ्य कर्मी दूर मौजूद व्यक्ति या समुदाय तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचने के लिए करते हैं। टेलीमेडिसिन के माध्यम से डॉक्टर्स न सिर्फ मरीज़ों से संपर्क स्थापित करते हैं बल्कि उनके रोग, चोटों, अनुसंधान एवं मूल्यांकन, निदान, उपचार और रोकथाम पर भी काम करते हैं। यहाँ संपर्क और सूचना के आदान-प्रदान के लिए इ-मेल, व्हाट्सप्प और वीडियो चैट का इस्तेमाल किया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक़ हालिया दौर में ये प्रणाली कितनी ज़रूरी है इसका उदाहरण थिरुअनंतपुरम के श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी में हुए वाकये से लगता है. यहाँ कोरोना वायरस से संक्रमित हुए सिर्फ एक डॉक्टर के चलते सारे 76 सदस्यीय स्टाफ को quarantine में जाना पड़ा। नतीजतन , अस्पताल मृतप्राय हो गया। तो छुआ छूत के इस दौर में टेलीमेडिसिन के तीन तत्काल फायदे हैं
1 .अस्पतालों के इमरजेंसी वार्डस में भीड़ इकट्ठा नहीं होती
2 .निजी संपर्क न होने से स्वास्थ्य कर्मी संक्रमण से सुरक्षित रहते हैं
3. ग्लव्स , गाउन और मास्क का खर्च बचता है
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयुष चिकित्सकों से टेलीमेडिसिन प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचने की अपील की है। विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि न सिर्फ इस आपदा बल्कि आने वाले वक़्त में भी टेलीमेडिसिन की भारत में भूमिका बढ़ने वाली है जो आम नागरिक को बेहतर स्वास्थ्य कवच मुहैया कराने में एहम भूमिका अदा करेगी। ये प्लेटफार्म अमरीका और चीन में भी इस महामारी को रोकने में एहम भूमिका अदा कर रहा है।
न्यायपालिका – क्या आप जानते हैं कि एक सामान्य दिन में सुप्रीम कोर्ट में दो या अधिक न्यायाधीशों की 17 बेंचों काम करती है जो 50 से 70 मामलों के बीच सुनवाई करती है। पर कोरोना वायरस के प्रसार और सोशल डिस्टेंसिंग के चलते पिछले महीने बमुश्किल दो बेंचें बैठी जो दूर से यानी remote distance से मामलों की सुनवाई कर रही थी। फिर इसी 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि “हम प्रौद्योगिकी को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते है”, साथ ही अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दिशा-निर्देश देते हुए कहा कि कोर्ट्स अपने परिसरों में लोगों की उपस्थिति कम करने के लिए सारे कानूनी कदम उठाये। यानी ताज़े हालात को देखते हुए सभी जिला न्यायालयों से लेकर उच्च अदालतों में चुने हुए केसेस सिर्फ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तहत निबटाये जा रहे है। सुप्रीम कोर्ट ये भी कहा की अब वक़्त आ गया है जब न्यायपालिका को स्कैन की गई फ़ाइलों को अपलोड करने के बजाय ई-फाइलिंग करने और स्मार्ट फॉर्म्स के उपयोग के बारे में सोचना शुरू करना चाहिए ताकि पूरी कार्य श्रृंखला को डिजिटल किया जा सके। कोर्ट ने न्याय विभाग और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) को भी ऐसे सक्षम तकनीकी बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करने का निर्देश दिए जो अदालतों को सुचारू रूप से काम करने में मददगार साबित हो। फिलहाल, ऐसी ही एक कार्रवाई का हिस्सा रहे वरिष्ठ कानूनविद के वी विश्वनाथन इसे एक नयी, सरल और सुकूनदायी परंपरा की शुरुआत मान रहे हैं जो निकट भविष्य में नज़ीर बनेगी।
पुलिस व्यवस्था – संक्रमण का ये दौर में भारतीय पुलिस की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ा गया। – एक तरफ उसे लाक्डॉन को कड़ाई से लागू करना था तो वहीं दूसरी तरफ आम नागरिक के जीवन में पसर गयी समस्याओं का भी पुरसाहाल लेना था। पर जानकारों की माने तो यही मौका आम नागरिक और पुलिस के बीच फैली खायी को पाटने का भी है। पुलिस ने नए रिश्ते बुनने की इस चुनौती को भी स्वीकारा है। इसमें उसकी मदद तकनीक और सोशल मीडिया कर रहे हैं। मसलन , दवा चाहिए या खाना या फिर कोई और मदद, आपको 112 पर कॉल कर के या फिर ट्विटर पर मैसेज छोड़ना होगा। निश्चित समय पर सरकारी मुलाजिम आप तक मदद लेकर हाज़िर हो जायेगा। 19 फ़रवरी, 2019 को देश भर में शुरू हुई इस हेल्पलाइन नंबर पर पुलिस, फायर, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा और बाल संरक्षण जैसी सेवायें उपलब्ध हैं। आज लाक्डॉन में ये इमरजेंसी नंबर एक आम नागरिक के लिए संजीवनी से कम नहीं है। इसके साथ आज तकरीबन सभी पुलिस अफसरों के टवीटर हैंडल मौजूद है जिनसे एक आम शहरी कभी भी संपर्क कर सकता है। वैसे आपने कोलकाता पुलिस का वो वीडियो भी देखा ही होगा जहाँ उसके अफसर शहर की खाली पड़ी सडकों पर रबिन्द्र संगीत गा कर बारजों में खड़े नागरिकों का उत्साहवर्धन कर रहे हैं। आज देश भर के पुलिस स्टेशनों के सोशल मीडिया एकाउंट्स कोरोना से संबंधित एनिमेशन, गाने, नृत्य और गरीबों को पुलिस द्वारा भोजन सौंपने की तस्वीरों के साथ जीवंत हो गए हैं।
और सुदूर इलाके जहाँ सोशल मीडिया नहीं है वहां पुलिस ने आम जनता से कोरोना वायरस पर संवाद करने के लिए दूसरे दिलचस्प तरीके अपनाये हैं -आंध्र प्रदेश के पीपुलली गांव में तैनात पुलिस अधिकारी मारुति शंकर ने पास के गाँव से एक सफ़ेद घोडा मंगाया और उस पर लाल रंग से कोरोना वायरस की छवियां उकेर दी। फिर इस घोड़े पर सवार होकर एक माइक्रोफोन के साथ वो सारे इलाके में जागरूकता पैदा करते घूमे। गांव वालों को बताया गया कि कोरोना वायरस इस घोड़े जितना तेज़ भाग सकता है सो वो बच कर रहें। इस घोड़े का नाम भी उन्होंने कोरोना घोडा रखा है। शंकर की इस दिलचस्प पहल का इलाके में अच्छा असर देखने को मिल रहा है। पुलिस द्वारा देश भर में हुई ऐसी पहलों पर तो पूरी किताब लिखी जा सकती है। बंगलुरु के सोशल मीडिया कंसल्टेंट अशोक लला कहते हैं कि एक आम नागरिक के पुलिस का ये संवाद और मानवीय चेहरा किसी सुखद बदलाव से कम नहीं, वो चाहता है की ये बदलाव महामारी के बाद भी बना ही रहे।
इस आर्टिकल में हम मोटी मोटी बात ही कर पाए। इतना ही हो सकता था। मक़सद था Covid 19 जैसी विकट महामारी से ज़ोरदार मोर्चा लेते हरावल दस्ते की यानी – स्वास्थ्य कर्मी , न्यायपालिका और कानून एवम व्यवस्था जैसी सरकारी एजेंसीज के वाकये आपको बताना। और कैसे आज जन्म लेती ये नयी पहलें निकट भविष्य में ठोस व्यवस्था बन कर जन कल्याण के लक्ष्य को विराट ऊचाइयों पर ले जा सकती है। जान लीजिये कि इस वक़्त सरकार के सारे अंग एक होकर देश को संकट से उबारने के लिए दिन रात काम कर रहे हैं। लाल फीताशाही को दरकिनार कर उन चुनौतियों को दिनों में फतेह कर रहे हैं जो पहले बरसों तक असाध्य समझी जाती रहीं थी। इस रिपोर्ट को लिखते वक़्त भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण मात्र कुछ हज़ार तक सीमित था, मृत्यु भी सैकड़े तक सिमटी हुई थी। WHO के मुताबिक़ भारत की करीब 1 अरब 38 करोड़ की जनसख्या को देखते हुए ये प्रयत्न निसंदेह तारीफ के काबिल है। फिलहाल, ये संतोषजनक नतीजे तंत्र से जुड़े उन सारे कर्मियों की देन हैं जो रोज़ अपनी जानें जोखिम में डाल कर, अपने घर परिवारों से दूर राष्ट्र सेवा में लगे हैं। कई तो शहादत तक दे चुके हैं। इन्हें नमन। तो साफ़ हैं कि सामने चुनौतियाँ हैं, कमियां भी हैं, पर आज हमारे संगठित और लक्षित प्रयास इन पर भारी पद रहे हैं। तो अंत में, जानकार कहते हैं कि इस दौर ने काफी कुछ रीसेट कर दिया है। सरकार को नए लक्ष्य दिए हैं, निजी क्षेत्र को कई सबक और देश की जनता को ज़िम्मेदारी के साथ साथ नयी उम्मीदें। तो चरैवेति, चरैवेति।।।।।