गुड़गांव की मल्टीनेशनल आईटी कंपनी मे काम करने वाली सौम्या* की 4 साल पहले जब शादी हुई थी, तब ही उन्हें पता था कि उनके पति और उनमे कई वैचारिक मतभेद हैं। लेकिन लॉकडाउन के दौरान जो हुआ उसके बारे में तो सौम्या ने सोचा तक नहीं था। दोनों के बीच बहस इतनी बढ़ी कि पति ने उसके ऊपर हाथ उठा दिया। मामला इतना गंभीर हो गया कि आखिरकार लॉकडाउन के बीच सौम्या को दिल्ली, अपने मायके जाने पर मजबूर होना पड़ा।
कोरोनोवायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से घरेलू हिंसा के मामलों में जबरदस्त तेज़ी देखने को मिल रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक लॉकडाउन के पहले सप्ताह में घरेलू हिंसा की घटनाओं में दोगुनी वृद्धी हुई और ऐसे मामले सप्ताह दर सप्ताह बढ़ ही रहे हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए आयोग ने एक व्हाट्स नंबर हेल्पलाइन (7217735372) भी शुरु की है, जिस पर घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं शिकायत दर्ज करा सकती हैं। इसके अवाला महिला कल्याण मंत्रालय भारत सरकार की तरफ से महिलाओं की समस्याओं के लिए वन-स्टॉप सेंटर्स, सुधार गृह, उज्जवला गृह, आदि सुविधायें भी हैं। भारत में फिलहाल 683 वन-सटॉप सेंटर्स हैं जहां महिलाओं को काउंसलिंग से लेकर कानूनी, हर तरह की सहायता मोहैय्या कराई जा रही है। घरेलू हिंसा की वारदातों में अधिकतर मामले शारीरिक और मानसिक प्रताणना के हैं। कई मामलों में महिलाओं को घर से भी बाहर निकाल दिया गया है।
पूरी दुनिया में बढ़ रही है घरेलू हिंसा
लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी की घटनाए केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। दुनिया के दूसरे देशों में भी लॉकडाउन के दौरान ऐसी घटनाओं में जबरदस्त इज़ाफा देखने को मिल रहा है।
इसका सबसे पहला उदाहरण हमें कोरोनावायरस के सबसे पहले हॉट स्पॉट चीन के हुबेई प्रांत में देखने को मिला। एक रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान इस प्रांत में घरेलू हिंसा की घटनाओं में तिगुने की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी।
अमेरिका के विभिन्न राज्यों में घरेलू हिंसा की घटनाओं में 5 से 35 फीसदी का इजाफ़ा हुआ है। ब्रिटेन में भी कोरोनावायरस की वजह से लॉकडाउन है और वहां भी घरेलू हिंसा की रिपोर्टिंग के लिए बनी हॉटलाइन पर शिकायतों की संख्या में 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इटली, स्पेन और फ्रांस में भी ऐसी घटनाओं में तेज़ी आई है।
लेकिन सबसे बुरा हाल मध्य-पूर्व देशों का है। ट्यूनीशिया जैसे देश में घरेलू हिंसा की घटनाओं में पांच गुना की वृद्धी हुई है। जब कि लेबनान जैसे देश में ऐसे मामले दोगुने हो गये हैं। इन देशों के महिला संगठनों का कहना है कि घरेलू हिंसा के मामलों की संख्या और भी ज्यादा है क्यों कि सरकारें कोरोनावायरस से निपटने में इतनी व्यस्त हैं कि महिलाओं की उन्हें फिक्र ही नहीं है।
इसका संज्ञान संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंतोनियो गुतरेज़ ने भी लिया। उन्होंने ने कहा कि “महिलाएं घर पर सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं लेकिन ये समय ऐसा है जब उन्हें घर पर ही सबसे ज्यादा हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।“
क्या है कारण
लॉकडाउन दुनिया के अधिकांश देशों के लिए एक नई बात है। एक साथ, एक घर में, इतने दिनो बंद रहना शायद ही हमने कभी अनुभव किया हो। ये माहौल अजीब है और इस माहौल को घरेलू हिंसा में आई बढ़ोत्तरी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। गुड़गांव की माइंड मैटर्स संस्था में कंस्लटेंट, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, डॉ सुचित्रा शुक्ला का कहना है कि
”जब हम बाहर निकलते हैं, दूसरों से मिलते हैं तो हमें अपनी भावनायें व्यक्त करने के कई मौके मिलते हैं… हमें कई माध्यम मिलते हैं जिनके ज़रिये हम अपने अंदर की बात, शिकायते, अंदर का गुस्सा आदि निकाल सकते हैं। लेकिन लॉकडाउन जैसी परिस्थिति में दो व्यक्ति, जिनके बीच मतभेद होते हैं, एक घर में दिन रात रहने को मजबूर हो जाते हैं। दोनों के बीच संवाद नहीं होता और जब भावनाएं चरम पर जाती हैं तो हिंसक रूप ले लेती हैं।“
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा के मुताबिक उनके पास जो घरेलू हिंसा की शिकायते आयी हैं वो ईमेल से आयी हैं। ज़ाहिर है ये वो महिलायें है जो पढ़ी लिखी हैं और इनमें कई कामकाजी भी हैं। रेखा शर्मा के मुताबिक
“लॉकडाउन के दौरान घर का थोड़ा काम पुरुष के ज़िम्मे भी आ रहा है, जो भारतीय पुरुष के लिए नयी बात है और वो ऐसा करने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पा रहे हैं। दूसरा, अधिकतर घरों में आज भी पुरूष ही कमाई करता आ रहा है। लेकिन कोरोनावायरस लॉकडाउन के चलते अब उसकी रोज़ी रोटी पर खतरा मंडरा रहा है और उस पर मानसिक दबाव बढ़ा है, जिसके चलते भी हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है।“
क्या हैं उपाय
राष्ट्रीय महिला आयोग घरेलू हिंसा से निपटने के राज्य पुलिस विभाग मिल कर काम कर रही है। साथ ही उसने राज्य के महिला आयोगों को भी सक्रिय कर दिया है। लेकिन लॉकडाउन की इस स्थिति में चुनौतियां कम नहीं हैं। इस तरह की घटनाओं और विवादों को संभालने के लिए सबसे ज़रूरी होती है काउंसलिंग, जो कि लॉकडाउन के चलते आसान नहीं हैं। डॉ सुचित्रा शुक्ला के मुताबिक गंभीर परिस्थिति में क्रासिस इंटरवेंशन की विधा अपनानी पड़ती है और विशेषज्ञ ऑन लाइन काउंसलिंग करने की सलाह देते हैं। उनकी दूसरी जोड़ों को सलाह है कि एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें, हमेशा बातचीत कर शालीनता के साथ विचारों का आदान-प्रदान जारी रखें और एक दूसरे को समझने का भरसक प्रयास करें। हमेशा याद रखें कि आपका कोई भी गलत कदम, आपके रिश्तों में दरार डाल सकता है, जिसे भरने में जिंदगी भी लग सकती है।
लॉकडाउन उतना खराब भी नहीं
माना कोरोनावायरस लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा में बढ़त हो गयी है, लेकिन क्या आपने सोचा कि इसी बहाने हमें एक मौका मिला है, अपने साथी को समझने का, उसे जानने का, उसे पहचानने… उसे बताने का कि मैं अगर फलाना बात पर गुस्सा होता हूं तो क्यूं
डॉ सुचित्रा शुक्ला के मुताबिक
“अपने रिश्तों को सुधारने और संवारने का इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता। अगले की बात सुनने, समझने की कोशिश करने और एक स्वस्थ्य तालमेल बैठाने का ये सही समय है। क्यों कि आपके समय ही समय है और आप घर पर एक दूसरे के लिए हमेशा मौजूद हैं।“
कुल मिलाकर कहें तो अगर दोनो पार्टनर्स एक दूसरे की भावनाओं की इज्ज़त करें तो लॉकडाउन शायद एक खुशनुमा याद बन जाय और इस अंधकार से सुबह तक का सफर आसान हो जाय।
*अनुरोध पर नाम बदले गये हैं