
UNDATED : In this Sept. 23, 2015, photo, provided by Filipino fisherman Renato Etac, a Chinese Coast Guard boat sprays a water cannon at Filipino fishermen near Scarborough Shoal in the South China Sea. Photo – AP/PTI
दक्षिण चीन सागर में इन दिनों चीन और रूस का साझा सैनिक अभ्यास चल रहा है. जानकारों के मुताबिक इसके जरिए रूस और चीन दोनों दुनिया को अपने-अपने संदेश भेजने की कोशिश में हैं. हांगकांग विश्वविद्यालय से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक जोसेफ चेंग ने रूसी वेबसाइट रशिया टुडे से कहा- रूस और चीन बता रहे हैं कि आज उनके हित जुड़ गए हैं. रूस संदेश देना चाहता है कि वह वैश्विक शक्ति है. उसके वैश्विक हित हैं और वह उनकी रक्षा के लिए तैयार है. उधर चीन दक्षिण-पूर्व एशिया में अमेरिका के द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सैनिक अभ्यासों का जवाब देने की कोशिश में है.
यह संयोग नहीं है कि इन्ही दिनों अमेरिका और भारत का संयुक्त सैनिक अभ्यास शुरू हुआ है. इसे युद्ध अभ्यास-2016 नाम से चलाया जा रहा है. कुछ हफ्ते पहले ही भारत ने संचार-तंत्र साझा करने का अहम समझौता (लेमोआ) अमेरिका से किया. इस कड़ी में दो और समझौतों पर बातचीत चल रही है, जिनके तहत दोनों देश संचार एवं सूचनाओं को साझा करेंगे. उधर अमेरिका ने भारत को अपना महत्त्वपूर्ण रक्षा सहभागी घोषित किया है. इन सबसे भारत और अमेरिका की करीबी बढ़ी है. बल्कि ऐसी धारणा बनी है कि भारत धीरे-धीरे अमेरिकी खेमे में शामिल हो रहा है. ऐसी बातें कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे दलों ने भी कही हैँ.
भारत और चीन के संबंधों में हाल में बढ़ी कड़वाहट के पीछे भारत-अमेरिका संबंधों में आए नए दौर की भूमिका भी बताई जाती है. पिछले दो साल में चीन ने पाकिस्तान से अपनी धुरी मजबूत की है. 46 अरब डॉलर के निवेश से वह वहां आर्थिक गलियारा बना रहा है, जो पाक कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से भी गुजरेगा. ऐसी खबरें आई हैं कि इस निर्माण को सुरक्षा देने के लिए चीनी फौजी पीओके में मौजूद हैँ. इसी दौर में संयुक्त राष्ट्र में चीन ने जकीउर रहमान लखवी और हाफिज सईद के मुद्दों पर पाकिस्तान को समर्थन दिया. उसने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता भी रोकी.
इस बीच इस खबर ने सबका ध्यान खींचा है कि पहली बार रूस और पाकिस्तान साझा सैनिक अभ्यास करने की तैयारी में हैं. सवाल है कि क्या चीन-रूस और पाकिस्तान की एक नई धुरी बन रही है ? यह भारत के लिए खास चिंता का कारण होना चाहिए. रूस भारत का खास दोस्त रहा है. शीत युद्ध के दौर में उसने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की पुरजोर कूटनीतिक समर्थन दिया. कश्मीर मुद्दे पर भारत के पक्ष में उसने अनेक बार वीटो का इस्तेमाल किया. हथियार और परमाणु जैसी संवेदनशील तकनीक की आपूर्ति का वह भरोसेमंद जरिया रहा है, जबकि पूरे दौर में पाकिस्तान से उसके संबंध खराब रहे. लेकिन अब पाकिस्तान से उसके संबंध गहरा रहे हैं तो यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या भारत की अमेरिका से बढ़ी निकटता उसे पसंद नहीं आई है?
निर्विवाद रूप से अमेरिका और रूस दोनों से संबंध सामान्य रखने अथवा उन दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की बड़ी चुनौती भारतीय विदेश नीति के कर्ता-धर्ताओं के सामने है. रूस-चीन और पाकिस्तान का त्रिकोण भारत के सामरिक हितों के लिए नई चुनौतियां पैदा करेगा . वैसे भी इस क्षेत्र में बड़ी ताकतों का टकराव या उनकी पैंतरेबाजी भारत के हित में नहीं हो सकती.