एक अदृश्य दुश्मन से हमारी जंग जारी है। न जाने कितने मोर्चे खुले हैं और खुलेंगे। सरकार रोज़ हमारी हौसला अफ़ज़ाई कर रही। अभी 23 अप्रैल को पंचायतीराज दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो महामारी के खिलाफ ग्राम पंचायतों की भूमिका का सच्चा बखान किया। वीडियो कांफ्रेंस पर देश के चुनींदा सरपंचो से मुखातिब हो उन्होंने कहा की ये वो तबका है जो “दो गज़ दूरी”‘ का पालन करते हुए मोर्चे पर डटा है। तो सोचा क्यों न इस बार जनतंत्र की बुनियाद -ग्राम पंचायत पर एक नज़र डाली जाए। देश की आधी आबादी इससे जुडी है और निस्संदेह, ग्राम पंचायतें कोविद -19 के खिलाफ एक ठोस अस्त्र बन कर भी उभरी हैं। इसे एक अच्छा सन्देश माना जा सकता है।
तो चलिए, साफ़ -सफाई, सेहत के संस्कार और हमारी ग्राम पंचायतों की भूमिका पर कुछ बातें हो जाए। आपकी जानकारी के लिए स्थानीय स्वशासन या local self-government के सबसे ज़्यादा निर्वाचित प्रतिनिधि हमारे देश में हैं। इनमें 2. 6 लाख से ज़्यादा पंचायतों में 30 लाख प्रतिनिधि हैं जिनमें 10 लाख महिलाएं हैं। इतना बड़ा प्लेटफार्म बड़े से बड़े संकल्प को ठान कर पूरा कर सकता है। तो 2 अक्टूबर, 2014 को देश में लांच हुए स्वच्छ भारत अभियान में ग्राम पंचायतों की क्या भूमिका रही।
इस अभियान का लक्ष्य
– ग्रामीण जनसँख्या के जीवन स्तर में सुधार लाना
– वर्ष 2019 तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कवरेज की गति तेज़ करना
– जागरूकता, स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से स्थाई स्वच्छता आम जीवनशैली का हिस्सा बनाना
– सुरक्षित और स्थाई स्वच्छता के लिए सस्ती, सुचारु तकनीक को बढ़ावा देना
– साफ़ सफाई के लिए वैज्ञानिक ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों पर तवज्जो देना
मक़सद साफ़ था – लोगों में सफाई का बोध जगाना ,मुद्दतों से त्रास रही खुले में शौच करने की गन्दी आदत को बंद करा माहौल को बीमारीमुक्त बनाना। जान लीजिये कि इस महामारी ने हमारे स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता पर कंपास की सुई ला रोकी है। और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसका तत्काल निवारण स्वत्छता बताते हैं। फिलहाल इस मिशन में ग्रामीण समाज ने बढ़ चढ़ का हिस्सा लिया। नतीजतन सितम्बर 2014 में कुल 38 % पर पसरा सैनिटेशन कवरेज – 2 दिसम्बर, 2019 तक पूरा सौ फ़ीसदी हो गया। यानी देश के सारे गांव (5,99,963) खुले में शौचमुक्त से मुक्त हो गए। इस दौरान देश भर में 10 .14 करोड़ घरों में शौचालय बनाये गए। यानी सरकार और ग्राम पंचायतों ने इस समस्या और इससे फैलती बीमारियों को ख़त्म करने का जो संकल्प लिया उसे तमाम चुनौतियों,अंधविश्वासों को पार कर पूरा किया। ज़ाहिर है इससे ये तो साबित होता है कि एक सुचारु सामाजिक व्यवस्था की निरंतरता और संचालन के लिए इंसान का स्वस्थ होना कितना ज़रूरी होता है। RSTV ने भी इस मिशन से जुडी कई प्रेरक ग्राउंड रिपोर्ट्स बनायीं हैं। इन्हें आप इस वक़्त हमारे यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं
वैसे ग्राम पंचायतों को अपनी परिधि में रहने वालों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए क्या करना चाहिए, इसकी रूपरेखा संविधान के 73 वीं संशोधन की 11 वीं अनुसूची में मौजूद है। इसमें परिवार कल्याण, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे 29 विषय शामिल हैं। इनमें कुछ मूल दायित्व इस तरह से हैं
– स्वत्छता का पालन करते हुए मलेरिया, पानी से पैदा होती बीमारियां सहित संचारी रोगों (communicable deseases) को दूर रखना
– ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता, पोषण एवं रोजी कल्याण समितियों का प्रभावी ढंग से कामकाज सुनिश्चित करना
– अपने गांव को रेफरल सेंटर, इमरजेंसी सेवाओं को 24×7 जोड़ना
– स्थानीय नागरिकों की परिवार नियोजन सेवाएं पहुंचना
– मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए स्वास्थ्य विभाग के साथ सहयोग करना
– मातृ मृत्यु दर का सोशल ऑडिट करवाना
-कमज़ोर तबके तक स्वास्थ्य बीमा योजनाएं लाना
-गैर-संचारी रोगों के बारे में जागरूकता फैलाना
— कीटाणु जनित रोगों की रोकथाम करना
इनके अलावा रोगों का जल्द निदान और समय पर उपचार करना, अभियानों के माध्यम से साफ़ सफाई का प्रचार करना, धुआं रहित चूल्हा, बेहतर खाना पकाने के स्टोव और पर्याप्त वेंटिलेशन सुनिश्चित करना, स्वस्थ जीवन प्रथाओं को घर घर पहुँचाना, नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं की देखभाल में परिवारों की मदद करना, टीकाकरण और स्तनपान को बढ़ावा देने के साथ साथ मादक द्रव्यों और पदार्थों के हानिकारक उपयोग पर रोक लगाना।
ये तो रही बात दिशा निर्देशों की। क्या भारत में ऐसा कोई आदर्श ग्राम है ? हाँ, ज़रूर हैं जनाब। चलिए आपको एक ऐसे गांव लिए चलते हैं जिसे 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश के सबसे स्वत्छ गाँव का दर्ज़ा दिया था। इसका नाम मौलिनूंग है और ये मेघालय राज्य की राजधानी शिलोंग से 100 किलोमीटर दूर है। इस गांव को ये शानदार दर्जा किन खासियतों के चलते मिला। और क्यों प्रधानमंत्री ने सारे देश से इसे अपना रोल मॉडल बनाने को कहा।
(मोलिनूंग की खासियतें संक्षेप में)
– इस गाँव के प्रत्येक घर में 2007 से शौचालय मौजूद हैं
– प्रत्येक घर के बाहर बाँस के डस्टबिन लगे हैं जिनमें गिरे हुए पत्ते सहित आस पास का कूड़ा डाला जाता है
– इस गाँव में धूम्रपान और प्लास्टिक के उपयोग पर सख्त प्रतिबंध है
– ग्राम सभा नियम तय करती है। सभी उनका पालन करते हैं। नियम तोड़ने वालों को कड़ा दंड दिया जाता है
– आर्गेनिक कचरे को गड्ढे में दबा कर खाद बनायी और इस्तेमाल की जाती है
– स्थानीय निवासी अपने घरों के साथ साथ सड़कों की सफाई भी करते हैं और पेड़ लगाते हैं
– सफाई का काम वयस्क और बच्चे सोमवार से शुक्रवार तक करते हैं। शनिवार को गाँव के मुखिया दूसरे आवश्यक काम सौंपते हैं।
– इसमें स्कूल की सफाई जैसे सामाजिक कार्य शामिल होते हैं।
मौलिनूंग, 600 की जनसँख्या वाला खासी जनजाति बाहुल्य गाँव है। ये जनजाति अपने matrilineal या मातृसत्तात्मक समाज के लिए जानी जाती है। मौलिनूंग के निवासियों के मन में बचपन से ही स्वच्छता का महत्व बैठा दिया जाता है। आपकी जानकारी के लिए – 100 प्रतिशत साक्षरता दर वाले मौलिनूंग को वर्ष 2003 में ‘एशिया का सबसे स्वच्छ गांव’ और 2005 में डिस्कवर इंडिया द्वारा ‘भारत का सबसे स्वच्छ गांव’ की उपाधि से सम्मानित किया जा चूका है। यानी स्वच्छता के साथ 100 प्रतिशत साक्षरता दर, महिला सशक्तीकरण और रोगमुक्त होना – प्रधानमंत्री सच ही कहते हैं, ये सपने सरीखा है। इसे अपनी ज़मीन पर उतारने की देश भर में होड़ लगनी चाहिए। तो जब भी हालात सामान्य हों आपको पहाड़ों और समुद्र तटों के अरमान छोड़ कर एक बार मौलिनूंग जैसे गावों में ज़रूर जाना चाहिए। कुछ नया और ठोस करने की प्रेरणा ज़रूर मिलेगी। आज ये आधुनिक भारत के उजले तीर्थ जो हैं।
तो मौलिनूंग जैसे आदर्श, ”दो गज़ दूरी ” की ज़मीनी समझ और स्वच्छ भारत अभियान सरीखी जीत ने भारत की ग्राम पंचायतों को ”स्वास्थ्य सर्वोपरि” का मंत्र दिया है। साथ ही रास्ते में खड़ी किसी भी चुनौती को कड़ी मेहनत और चातुर्य बल से हराने का भी। पर सबसे ज़रूरी बात – हमें और आपको इस दूर तक चलने वाले संघर्ष में इनका हौसला बनाये रखना है, इन्हें जिताना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी ठोस पहल कुछ दिन पहले बीते पंचायतीराज दिवस पर कर भी दी है। सुझाव है की उस विचार- विमर्श को ज़रूर पढियेगा, आत्मसात करियेगा।