देश-दुनिया में जलप्लावन का जिक्र प्राचीनकाल से होता रहा है. बरसात में नदियों का जलस्तर विकराल रूप अख्तियार कर लेता है. भारत में बाढ़ से हर साल एक करोड़ से भी अधिक आबादी दर-बदर होने को मजबूर है. बिहार में वहां की कोसी के तांडव का लंबा सिलसिला है. रेणु ने ‘मैला आंचल’ में कोसी से विभीषिका का जिक्र किया था. भूपेन हजारिका ने भी असम में हर साल ’ब्रह्मपुत्र’ के तांडव का वर्णन अपने साहित्य में किया है. तबसे अब तक कोसी और ब्रह्मपुत्र में न जाने कितना पानी बह चुका है. लेकिन बाढ़ग्रस्त इलाकों की तकदीर नहीं बदली.
उड़ीसा, बिहार और असम में करीब एक करोड़ लोग बाढ़ से जूझ रहे हैं . भूखे-प्यासे हजारों लोगों ने डूबे घरों की छतों पर शरण ले रखी है. ज्यादातर तो बंधों और स्कूलों में बनाए गए अस्थायी शिविरों में कुदरत की मार झेल रहे हैं. मृतकों की तादाद 200 तक पहुंचने को बेताब है. इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में भी बीते दिनों मुश्किल हालात रहे . राज्यवार आँकड़े देखें तों उड़ीसा में 50 से ज़्यादा मौतें हो चुकी है. बिहार के 12 जिले-किशनगंज, कटिहार, मधेपुरा, अररिया, सहरसा, सुपौल, गोपालगंज, पुरनिया, दरभंगा और भागलपुर में अब तक 40 से ज़्यादा मौतें हो चुकी है. राज्य के 2162 गांव पानी में डूबे रहे . वहां क़रीब तीस लाख लोग बुरी तरह पीड़ित हैं. ऊपरी अरुणांचल प्रदेश और भूटान में भारी बरसात के चलते असम की नदियां उफान पर हैं. लखीमपुर, गोलाघाटा, बोगाईगांव, जोरहाट , धमजी, बारपेटा और गोलपारा में स्थिति अभी भी भयावह है.
सवाल यह है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण की नेशनल रेस्पांस फोर्स याने एनडीआरएफ का काम बस इतना ही है ? क्या एनडीएमए का काम सिर्फ बचाव और राहत तक सीमित है ? प्राधिकरण के एक अधिकारी कहते हैं, ‘‘दरअसल एनडीएमए केन्द्र सरकार के अधीन कार्यरत संस्था है और इसकी सीमाएं हैं. एनडीएमए राज्यों में निर्माण कार्य नहीं कर सकती. यह राज्य का अधिकार और विषय है. बाढ़ से स्थायी निजात और रोकने के लिए कारगर बंदोबस्त राज्यों को ही करना होगा.’’ एनडीएमए को इस वित्तीय साल (2016-17) के लिए 677.89 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है. इतनी बड़ी राशि का इस्तेमाल सिर्फ नीतियां बनाने के लिए नहीं है .
केन्द्र सरकार का कहना है कि नदियों के तटबंधों का निर्माण, नदियो में भर आए सिल्ट को निकालने का काम और तटबंधों के रखरखाव का कार्य राज्यों का है. केन्द्र की मदद राष्ट्रीय आपदा प्रबन्ध प्राधिकरण के माध्यम से राहत-बचाव तथा सैन्य और अर्धसैन्य बलों की तैनाती तक ही सीमित है. बाढ़ राहत पैकेज भी केन्द्र द्वारा राज्यों की मांग पर दिया जाता है. लेकिन जरूरत सिर्फ यही नहीं है. यह सब कुछ एक रूटीन सा हो चुका है. हर साल बाढ़ आती ही है. सारे तंत्र रस्मअदायगी के तौर पर अपने काम में तल्लीन हो जाते हैं. जरूरत है केन्द्र और राज्यों को मिलकर ऐसा प्रावधान करने की, जिससे स्थायी तौर पर निजात मिल सके. अनेक देशों ने बाढ़ से जन-धन की हानि रोकने के लिए बेहतरीन और व्यापक बंदोबस्त किए हैं तो भारत क्यों नहीं कर सकता ? जरूरत है कारगर प्लान, उसके क्रियान्वयन और गंभीर इच्छाशक्ति की.
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